विपक्ष का काम है सरकार की बुराई करना। और कांग्रेस इसका कोई मौका छोड़ना नहीं चाहती। मोदी की अमरीका यात्रा, वहां टॉप आईटी कंपनियों के सीईओ से मुलाकात और फिर उस मीडिया का गुणगान ये सब कांग्रेस को विचलित करने लिए काफी थे और कांग्रेस ने बाकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मोदी की बुराई कर डाली। ज़ुकरबर्ग का डिजिटल इंडिया के सपोर्ट में प्रोफाइल पिक्चर बदलने से कांग्रेस ज़ुकरबर्ग से भी नाराज़ है.
Cartoon by Kirtish Bhatt (www.bamulahija.com)
Tuesday, September 29, 2015
ये रोना भी कोई रोना है लल्लू
डिजिटल इंडिया, सोशल इंडिया के चक्कर में बाकी के इंडिया की कोई सुध लेने वाला नहीं। जब तक बात फेसबुक पर ना आ जाये लोग संज्ञान नहीं लेते। मोशन से लेकर इमोशंस तक फेसबुक की दीवार पर टंगे देखे जा सकते हैं पर इस दीवार के पीछे भी तो काफी कुछ होगा। Cartoon by Kirtish Bhatt (www.bamulahija.com)
बिहारी खिचड़ी
चुनाव के पहले विकास, समाज का उत्थान, शिक्षा, गरीबी की बाते रस्म अदायगी होती हैं, खासकर बिहार चुनावों में, दरअसल बिहार में जो चुनाव की खिचड़ी पकती है उसके मसाले जरा अलग ही होते हैं जैसे बाहुबली, आरक्षण, वंशवाद, जातिवाद वगैरह ।
Cartoon by Kirtish Bhatt (www.bamulahija.com)Sunday, September 27, 2015
लोकतंत्र के लिए हादसे ज़रूरी हैं !
संतोष त्रिवेदी |
कभी हादसों की वजह से मंत्री-पद खतरे में पड़ जाते थे पर अब स्वयं मंत्री हादसों को अपने लिए एक मौक़ा मानते हैं।वे इस इंतज़ार में रहते हैं कि कब हादसा हो और उन्हें जनता के साथ खड़े होने का सुयोग मिले।इस तरह वे सरकारी बजट को राहत-कार्य में बाँटकर अपना मंत्री बनना सार्थक कर सकें।कुछ ऐसे ही हृदयोद्गार व्यक्त किये हैं देश के हृदय-प्रदेश के बड़े मंत्री ने।एक बड़े हादसे के बाद जब उनसे पूछा गया कि इतनी मौतों का जिम्मेदार कौन है तो मंत्री जी ने बेलौस अंदाज़ में उत्तर दिया कि ये हादसे हैं और ये होते रहते हैं।अगर ये न हों तो जनता की सेवा करने का मौक़ा उनको कैसे मिलेगा !
हादसों को मौकों में बदलने वाले ऐसे लोग हमारे लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने में जुटे हैं।ऐसे लोगों का लोकतंत्र में प्रवेश किसी हादसे से कम नहीं।हमारे मुहल्ले का कल्लू पहलवान अखाड़ेबाजी में छोटे-बड़े दाँव आजमा लेता था।दैवयोग से एक दिन उसके दाँव से विरोधी की गरदन ने बाकी शरीर से जुड़े रहने की जिद त्याग दी।उसके घरवाले चिल्लाते रहे कि यह हत्या है पर पुलिस ने माना कि यह महज हादसा था।हादसे का संयोग मिलते ही कल्लू पहलवान सत्ताधारी दल में शामिल हो गए।उन्होंने इसे ईश्वर की ओर से दिया गया एक मौक़ा माना और आज वे प्रदेश के सुरक्षा मंत्री हैं।
लोकतंत्र की खूबी इसी में है कि नियमित अन्तराल पर ऐसे हादसे होते रहने चाहिए।इससे जनता के लिए बने बजट का कुछ हिस्सा उस तक पहुँचता ही है, राहत-राशि पहुँचाने से आपदा-राहत का पुनरभ्यास होता है सो अलग।मंत्री जनता के सामने खाली हाथ और बिना प्रयोजन के जाने लगें तो यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। मिले मौके का लाभ विरोधियों को लपकने भी नहीं देना चाहिए ! सरकार उनकी है,बड़े जोड़-जतन से बनी है तो लोगों को दिखनी भी चाहिए।हादसे के समय मंत्री जी का पीड़ित परिवार को ढांढस बँधाना और मातम से भरी भीड़ में अपनी मुस्कुराती पोज़ देना सबसे दुष्कर कार्य है।यूँ भी हादसा एक होता है और सरकार के मंत्री अनेक।गलती से हादसा कहीं और बड़ा हो गया तो मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के आगे मंत्री को मौक़ा गंवाना पड़ सकता है ! इसलिए जितने ज्यादा हादसे, उतनी अधिक कामकाजी सरकार।हादसों के बिना मौके का और बिना मौके के लोकतंत्र का भविष्य खतरे में दिखता है पर कुछ नासमझ इसे अवसरवाद से जोड़ देते हैं।यह गलत प्रवृत्ति है।
संतोष त्रिवेदी
जे 3/78 ए ,पहली मंजिल,
खिड़की एक्स.,मालवीयनगर
नई दिल्ली-110017
खिड़की एक्स.,मालवीयनगर
नई दिल्ली-110017
Saturday, September 26, 2015
Five bizarre 'lessons' in Indian textbooks
India, which has a literacy level well below the global average, has intensified its efforts in the field of education.
In 2012 the country passed the Right to Education act which guarantees free and compulsory education for all children until the age of 14. Read More >>
लालू के घर असंतोष
गरीब, पिछड़े और समाज अंतिम पंक्ति के व्यक्ति की बात करने वाले लालू जब चुनाव की बात आती है तो अपने बच्चों को चिंता करते नज़र आते हैं। इस बार बिहार के चुनावों में लालू के दो बेटों को टिकट मिला है. खैर चचि बात यह है कि घर में बाकी सात बच्चों में कोई असंतोष नहीं है.
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2030 के चुनाव
बिहार में चुनाव हों और भाई भतीजावाद की की बात ना हो ये हो नहीं सकता। हमेशा की तरह इस बार पार्टियों ने टिकट बांटे नहीं, बाँट लिए
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Sunday, September 20, 2015
करेला भी बैन हो
लम्बे समय से देश में बहस छिड़ी हुई है कि किसे क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। कुछ चीज़े ऐसी भी हैं जिकी ध्यान नहीं गया
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Wednesday, September 16, 2015
लावणी भी सीख लें ऑटो वाले
महाराष्ट्र में मराठी का भोपूं फिर बजा है. इस बार फरमान है कि उन्हीं ऑटो रिक्शा चालकों को परमिट मिलेगा जिन्हें मराठी आती है. अगर बात गैर मराठियों प्रताड़ित करने की है तो फिर उन्हें और भी कठिन परीक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए।
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Tuesday, September 15, 2015
आठ रुपये किलो ...आठ रुपये किलो
हिंदी दिवस आते ही देश में भाषा को लेकर बहस और तरह तरह के आयोजन शुरू हो जाते हैं. कोई किस भाषा का पक्षधर तो कोई किसी भाषा का तरफदार, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो हर भाषा के प्रति एक सा भाव रखते हैं.
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तो शुरू करें ??
न्यूज़ चैनलों, ऊपर आने वाले कार्यक्रमों, उनके पत्रकारों और पैनलिस्टों का स्तर जगजाहिर है. अब हालिया घटना के बाद लगता है वो दिन भी दूर नहीं जब किसी चैनल के एंकर को पैनलिस्ट अपनी बात नहीं बोलने देने पर धुनते नज़र आएंगे। ऐसे में एहतियात ज़रूरी है.
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Tuesday, September 8, 2015
भारत - पाकिस्तान तब और अब
भारत पाकिस्तान आज़ादी के बाद से एक दुसरे आमने सामने रहें हैं. लेकिन समय समय पर दोनों देश और पूरी दुनिया शांतिपूर्वक समस्या का हल ढूंढने के प्रयास करते रहते हैं. फ़िलहाल के हालात देखकर तो ये कह सकते हैं कि स्थिति १९६५ से बेहतर है.
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एक सवाल इधर से भी
शिक्षक दिवस काफी धूम धाम से मनाया जाने लगा है आज कल. कही राष्ट्रपति शिक्षक बने हैं तो कहीं प्रधानमंत्री की क्लास चल रही है. वो बच्चे खुशकिस्मत थे जिनके शिक्षक आज के दिन प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति थे. लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी थे जो आज भी शिक्षक को ढूंढ रहे होंगे
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Saturday, September 5, 2015
स्थायी समस्या का अस्थायी इलाज
देश में सड़कों के ठिकाने नहीं और हमारे नेता सड़कें किनके नाम पर की जाएँ इस बात पर लड़ रहे हैं. समस्या तो स्थायी है लेकिन उसका एक अस्थायी हल जरूर हमारे पास है
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पटेल पर भारी पीटर
लाखों की भीड़, महीनों की मेहनत और हार्दिक पटेल के अरमानों पर एक इन्द्राणी और पीटर के किस्सों ने पानी फेर दिया। इन्द्राणी जैसे राष्ट्रिय मुद्दे (?) के आगे हार्दिक पटेल के आरक्षण का मुद्दा दब गया. वैसे इन्द्राणी के एक्शन इमोशन और सस्पेंस वाले एपिसोड में हार्दिक पटेल आरक्षण की नौटंकी क्या धरा था मीडिया वालों के लिए
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आई हेट आरक्षण
आरक्षण देश के सदाबहार मुद्दा है. इससे किसे क्या फायदा होता है ये तो एक अलग मुद्दा है लेकिन एक बड़ा वर्ग है जो इसका नुकसान भी उठा रहा है. इनमें बेचारी ये भी शामिल हैं जो हर आरक्षण के आंदोलन में पिटती हैं.
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नंबर वन……
राष्ट्रमंडल खेलों के समय सरकार ने दावा किया था कि खेलों का आयोजन ऐसा होगा कि लोग लम्बे समय तक याद रखेंगे। और वाकई खेल ऐसे हुए कि लोग आज भी नहीं भूले हैं. खिलाडियों के अलावा नेता और अधिकारी भी खूब खेल लिए इन राष्ट्रमंडल खेलों में. अब इनाम वितरण शुरू हुआ है
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वन रैंक, वन रैंक पेंशन और....
देश के के पूर्व सैनिक लम्बे समय से वन रैंक, वन पेंशन की मांग कर रहे हैं लम्बे समय से चली आ रही उनकी मांग पर सरकार भी कभी इधर तो कभी उधर होती रहती है. आखिर में सैनिकों के पास अब यही रास्ता बचा है कि सरकार से वन रैंक वन पेंशन के साथ वन स्टैंड पे रहने की मांग भी करे.
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गिरा गिरा गिरा … मैं गिरा
देश में शेयर बाजार गिरने के साथ और भी कई चीज़े गिरती हैं. चीन के शेयर बाजार के गिरने के असर दुनिया भर के शेयर बाजार के साथ बेचारे कुछ निवेशकों पर भी हुआ.
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